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#काव्योत्सव_भावनाप्रधान_कविता
बचपन
बहुत हसीन पल थे जिंदगी के
खाक मुट्ठी में उड़ा देते थे।
मासूमियत से भरा वो बचपन
माँ बाप लाखों दुआ देते थे।
मस्ती भरे पल दोस्तों संग
जिंदगी खुशनुमा बना देते थे।
अब रुख्सत हुए शोखियों के पल
जो हर पल को मज़ा देते थे।
रुबरु हुए जीवन की तलखियों से
वो यादों के पल रूला देते थे।
कोई लौटा दे वो बीते हुए पल
जो जिंदगी को इक वजह देते थे।..सीमा भाटिया
#काव्योत्सव_भावनाप्रधान_कविता
मां
धीमी तपती आंच सा
है मां प्यार तुम्हारा
शीत में गर्मी का एहसास
है मां प्यार तुम्हारा..
धूप छांव जिंदगी की
सताती रही बहुत हमेशा
पर कभी न उतरा दिल से
ममत्व का खुमार तुम्हारा..
रेगिस्तान की मरू में
बुझाती है प्यास जो
ऐसा रिमझिम फुहारों सा
मेघों का है राग तुम्हारा..
जीवन पथ की बगिया में
कांटों की शैय्या पर भी
फूलों की खुशबू सा महके
हरदम लाड दुलार तुम्हारा..
धीमी तपती आंच सा
है मां प्यार तुम्हारा
शीत में गर्मी का एहसास
है मां प्यार तुम्हारा.. सीमा भाटिया
#काव्योत्सव_भावनाप्रधान_कविता
#मुझे_भी_दर्द_होता_है
जी चाहता कभी कभी
तोड़ दूँ सारी वर्जनाएँ
और चिल्ला कर कहूँ
हाँ ,मैं भी तो इंसान हूँ
मुझे भी दर्द होता है...
क्षमता है मेरी जरूर
सहने की, परन्तु फिर
सीमा भी तो होती हैं
हर एक एहसास की
मुझे भी दर्द होता है...
मानुष हूँ साधारण सा
कोई देव योनि से नही
ना कोई पाषाण हूँ मैं
सहता रहे जो ठोकरें
मुझे भी दर्द होता है...
आवाज रुंद जाती है क्यों
जब जब इंतहा होती है
प्रताड़ना और अवहेलना
खामोश कर देते हैं क्यों
मुझे भी दर्द होता है....सीमा भाटिया
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