रावण प्रवृति के मानुष

पद और धन के लोभ में मद में चूर चूर वे रहते हैं
नारी को नारी ना समझे क्रूर क्रूर बन छलते हैं
धर्म की आड़ में नीच अधम निर्णायक पुरुष हो जाएं तो
नारी के अपमान अग्नि में खाक खाक हो जाते हैं ।

धर्म कर्म परिवार सामाजिक रीति रिवाजें हमसे हैं
लंबी उम्र को करवा , वट पत्नी से कराते पूजन हैं
पत्नी पीड़ित पुरुष कुछेक भरी सभा में वक्ता बन
खिल्ली का खुद पात्र बने तो हमे गंवारन कहते हैं।

दुशासन की दुष्ट प्रवृति रावण का अभिमान घटा
मर्यादा के प्रवर्तक श्री राम का जग में मान बढ़ा
कंस बहन को बहन ना समझा लाचारी पर घात किए
पलट के देखो साक्ष्य पुराने दुष्टों का क्या हाल हुआ।
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Hindi Poem by गायत्री शर्मा गुँजन : 111872391

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