आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
इक ज़रा सी हवा के चलते ही

कौन था तू कि फिर न देखा तुझे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही

#અજ્ઞાત

Hindi Poem by અધિવક્તા.જીતેન્દ્ર જોષી Adv. Jitendra Joshi : 111862230

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