समज नही पा रही कि़...
जाना कहा चाह रही थी और
ना जाने कहा जा रही हूं।
दुसरोकी किस्मत लिखना चाहती थी,
पर अब खुदकी ही लकीरे पढ रही हूं।
गुस्सा सबसे हूं,
पर खुदसे ही लड रही हूं।
हासिल तो नही कर पाई कुछ भी,
फिर क्या खोनेसे डर रही हूं।
मेरी धडकनो पर मत जाओ,
जिंदा हूं मगर अंदरसे मर रही हूं।