जीवनमें है बहोत अंधेरा अब तो उजाला होना चाहीए
जैसे भी हौ मगर ये मौषम बदलना चाहीए
लोग रोज बदलते है चेहरे कपडो की तरह
अब तो उनका पर्दा फास होना चाहीए
अब भी अच्छे लोग है जहान मे
अब तो बुराई का अंत होना चाहीए
मासुम बन के जो जीया वो यहा मसला गया
सच्चाईको अब फौलादके सांचे मे ढलना चाहीए
गर छीने कोई हक तुम्हारा तो उस वक्त
आंखसे आंसु नही शोला निकलना चाहीए
अगर मेरी याद करे बेचेन तुझे तो
तुझको मुझसे उसी वक्त आके मीलना चाहीए

Hindi Poem by Daxa Bhati : 111849857

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