विजय:
प्रकट रहेगा सूर्य जहाँ
वहीं हमारा घर होगा,
विकट मार्ग पर
विजय हमारी,
धूर्तों का क्षरण-क्षय होगा।
मृत्यु तो अभेद्य है
जन्म सदा अचिन्त्य है,
उदार धरा के गृह का
कब कहाँ संकट कटेगा!
नित नये रूप में
दुश्मन निकट प्रकट होगा,
हर चक्रव्यूह को तोड़कर
पाप कर्म ध्वस्त होगा।
इस भूमि का मोल नहीं
तू सजग बन समर्थ हो ले,
इस गगन को घेर ले
अपनी धरा को देख ले,
धूर्त के प्राण हर ले
सूर्य अपना ओढ़ ले।
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* महेशरौतेला