कुछ काँटे तुममें थे
जो मुझे चुभे,
कुछ काँटे मुझमें थे
जो तुम्हें चुभे।

कुछ फूल तुम पर खिले
कुछ फूल मुझमें खिले,
सुगंध थी
जो कुछ इधर ठहरी
कुछ उधर ठहरी।

* महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111828236

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