क्यों नहीं ???

हँसती हुई आँखों से पूछा...
ठेर सारी खुशियोंमें तू शामिल क्यों नहीं है ?
देखती हो सारा जहाँ...
महफिल में मशरूफ़ क्यों नहीं है ???

बेज़ार है तकदीर...
या कोई लकीर सो रही है ?
बुना कोई ख़्वाब है टूटा...
या कोइ ख़्वाहिश रो रही है ???

ग़ुमशुदा हुआ है क़ुछ ?
या बहेतर की तलाश में हो ? Nidhi
मिल गई है चाहत अग़र,
क़दम फिर महफ़ूज़ क्यों नहीं है ???

सूखने दे आँखों को,
जो अपना एहसास खो रही है !
बेशक़ीमती अश्कों से शायद,
बेग़ैरत के निशां धो रही है !!!

वजूद है ख़ुद का अग़र,
कारवाँ चलता क्यों नहीं है ?
रास्ता नामुक़्क़ीन है ग़र,
नया कोई मोड़ दिखता क्यों नहीं है ?

होंसलेकी बाँध ले गठरी,
उठा कदम तुजे चलना क्यों नहीं है ?
ढ़लती हुई शाम से कभी पूछो, Nidhi
क्या सचमें तुजे उगना नहीं है ???

Hindi Blog by Nidhi_Nanhi_Kalam_ : 111822490
Nidhi_Nanhi_Kalam_ 2 years ago

👌🏻👌🏻👌🏻🤞🏻

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

प्रश्नार्थ पूछती हुई गहन, चिंतन शील अभिव्यक्ति.....

S Sinha 2 years ago

Superb, Awesome!

Devesh Sony 2 years ago

Bahooot Khoob.. 👌👌

Piya 2 years ago

Awesome words nidhi 😊 बहोत अच्छे

SHUBHAM SONI 2 years ago

अत्यंत सुंदर रचना 👏👏 अप्रतिम 😊👍

Rushil Dodiya 2 years ago

क्यों कि... कोई फूल नहीं मेरे वास्ते मुझे चलना है कांटो के रास्ते विरानियों में मिला आशियाना मेरा अब यहीं है ठिकाना क्यों कि.. मेरी आंखों में जितना पानी है मेरे दर्द ओ गम की कहानी है कभी अपनों ने माना बेगाना यहीं रोना है यहीं मुस्कुराना

Jay _fire_feelings_ 2 years ago

ઉગવું એ માત્ર મનના પરિભ્રમણની એક ક્રિયા છે,, jay,, જે સ્વયંમમાં જ સોળે કળાએ ખીલેલાં હોય એને ઉદય થવાની શી જરૂર..!!!

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