दृश्य इतना ख़ूबसूरत लगा कि मैंने कार में बैठे बैठे ही पहले यह फ़ोटो खींचा और फिर भावाभिव्यक्ति ने रच डाली यह छोटी सी कविता।- - -

सुनहरा आँचल
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(रचनाकार - प्रमिला कौशिक)

तारकोल से यह बना रास्ता
लगता था काला साया सा।
सूरज ने अपनी किरणों से
आँचल सुनहरा फैलाया सा।

अब तो प्रतीत होता है ऐसा
ज्यों नदी बह रही सोने की।
सूरज की प्यारी धरती की हो
ज्यों चाह पिया में खोने की।

सूरज का सुंदर मुखड़ा देखो
निहार धरा को कैसे मुस्काए है।
नज़रों से नज़रें मिलने पर
स्मित वसुंधरा कैसे लजाए है।

Hindi Poem by Pramila Kaushik : 111821223
Pramila Kaushik 2 years ago

हार्दिक आभार दर्शिता जी 🙏🌺🌺🌺🌺🙏

Pramila Kaushik 2 years ago

बहुत बहुत हार्दिक आभार शेखर जी, आपके प्रेरक व इतने ख़ूबसूरत समीक्षात्मक गहन शब्दों के लिए 🙏🌹🌹🙏

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अनुपम कृति / अति सुन्दर रचना / जैसे मृत दृश्य या तस्वीर को शब्दों से पुनः: जीवन कर दिया हो ऐसा प्रकृतिमय आभास प्रतीत होता है एवंम गहन, चिंतन शील अभिव्यक्ति प्रेमिला जी....

Pramila Kaushik 2 years ago

हार्दिक आभार घनश्याम जी 🙏🌹🌹🙏

Pramila Kaushik 2 years ago

हार्दिक आभार शुभम जी 🙏🌹🌹🙏

SHUBHAM SONI 2 years ago

क्या बात है 👌👌

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