शीर्षक: अहँकार

अहँकार जिंदगी का वो हिस्सा है
जिसमें बेरुखी का हर किस्सा है

जीवन तो एक सीधा साधा सपना है
जिसमें गैर भी कहीं न कहीं अपना है

दंभ कहो या गरुर इंसान खुद को अकड़ाता है
खुद की लगाई बेड़ियों में खुद को जकड़ाता है

अहँकार विकार मन का, तन पर करता अधिकार
क्रोध का लगता रोग, न कोई दवा न कोई उपचार

व्यवहार में घुल हर अच्छाई को करता जहरीला
झूठी शान के पहनावे में अक्सर दिखता ये छबीला

"कमल" सही है सादा जीवन और उच्च विचार
जिंदगी की चाहत रहे सब से स्वर्णिम प्रेम- व्यवहार

न क्रोध आये, न आये अँहकार, पास मुस्कान रहे
संयम के गुलशन में खिले फूलों का सदा ध्यान रहे
✍️ कमल भंसाली

Hindi Poem by Kamal Bhansali : 111820966

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