1 पसीना
देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत।
जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।।
2 जेठ
जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप।
अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।।
3 अग्नि
अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात।
आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।।
4 ज्वाला
मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश।
मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।।
5 आतप
सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप।
वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।।
6 भूख
खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख।
उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏🙏