आँखों में बातों में भीड़ में ,

अकेले में साँसों संग,दुकेले में 

पूरब में ,पश्चिम में 

सब जगह ,सब ओर 

झाँक-झाँक देखा मैंने

 कहीं न मिला --

हाथों से फिसला सा 

आँखों में पिघला सा 

साँसों में बंद कहीं 

फिर भी स्वछंद कहीं 

घरवाले ,बेघर सा 

जीवन या मरघट सा --

सब जगह ,सब ओर 

ताक-ताक देखा

मैंने कहीं न मिला ---

गलियों की ख़ाकों में 

दीन -हीन  फाँकों में 

बंसी की तानों में

 भँवरे के गानों में 

खिलती सी कलियों में       

निर्मम सी गलियों में   

उत्तर  में ,दक्खिन में 

सब जगह ,सब छोर --

पात-पात देखा मैंने --

कहीं न मिला ---

मेरा मैं ---!!

डॉ.प्रणव भारती 

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111808793
Pranava Bharti 2 years ago

स्नेहिल धन्यवाद

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अनुपम कृति / सुन्दर भावों का गहन वर्णन....

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