अपने और पराए लोग।
न जाने कहा से आए लोग।
जीवन की विपरीत परिस्थिति में
मैने है आजमाए लोग।
अपने और पराए लोग। ......
एक हाथ बाहर रखकर वो जो हैं अंदर आए लोग।
जिनसे था कुछ खून का रिश्ता।
शुकूं नही दे पाए वो।
अपने और पराए लोग .......
जिनको हमने वचन दे दिया था न्योछावर प्राणों का।
वो ही आज हमारे खातिर जहर का प्याला लाए लोग।
अपने और पराए लोग......
हमने नींद भूख सब त्यागा उनके पीछे पड़े रहे।
हतोशाहित,मंद बुद्धि कह कर हमको भरमाए लोग।
अपने और पराए लोग.....
जिनको मैने अपना समझा वो ही बने पराए लोग।
मेरे जीवन के हर क्षण में आए काम पराए लोग .....
अपने और पराए लोग.......
जिनकी एक एक बात को मैने
दृढ़ संकल्प सा माना है।
जिनको मैने सदैव ही अपना आदर्श माना है।
उनके मुख से कटु वचनों का अंबार लगाएं वो
अपने और पराए.....
स्वार्थी संसार और परिवार जन भी स्वार्थी।
वक्त निकल जाने पर कोई नही सारथी।
कितना भी कर,नाम कमा ले।
फिर भी न गर्द्याएं लोग।
अपने और पराए लोग ......
सिद्ध कहां कर पाए लोग। ..........
आनंद त्रिपाठी