मन
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लौटते मधुमास की बारात है मन
क्षीण साँसों तले एक आस है मन
हम कहाँ से इन घटओं में सिमटते
गत विभा जी आखिरी साँस है मन
पल कई जब धूप में से हैं गुज़रते
छांह का कोमल -मधुर आभास है मन
लौटते बेघर घरों को जब सभी हैं
बीतते पल की उदासी ,दास है मन
मन की परिभाषा करें कि कैसे खुद ही
अपनी परिभाषा का एक एहसास है मन !!
शुभ रात्रि मित्रों
डॉ.प्रणव भारती