हमने अपनी बातों से
प्रभात लिया,इतिहास लिया,
जब तक चलने को मन था
स्वर्णिम अपना इतिहास किया।
कुछ तो है इस मिट्टी में
जो गौरव का पर्याय बना,
जहाँ-जहाँ भी लेटा है मन
देवत्व भाव अटूट बना।
जिस तीर्थ पर होता हूँ
वह कुछ बोल अनमोल कहा
स्नेहभक्ति इस जीवन में
किसी कारण अराध्य हुआ।
* महेश रौतेला