सृष्टि के कण कण में व्याप्त होने के बावजूद परम तत्व, ईश्वर या सत , आप उसे जिस भी नाम से पुकार लें, एक मानव की अंतर दृष्टि में क्यों नहीं आता? सुख की अनुभूति प्रदान करने की सम्भावना से परिपूर्ण होने के बावजूद ये संसार , जो कि परम ब्रह्म से ओत प्रोत है , आप्त है ,व्याप्त है, पर्याप्त है, मानव को अप्राप्त क्यों है? सत जो कि मानव को आनंद, परमानन्द से ओत प्रोत कर सकता है, मानव के लिए संताप देने का कारण कैसे बन जाता है? इस गूढ़ तथ्य पर विवेचन करती हुई प्रस्तुत है मेरी कविता "क्यों सत अंतस दृश्य नहीं?"

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111799111

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