(एक शहीद की कलम से)
(14 फरवरी विशेष )
वो भी ऐसा ही एक प्रेमदिवस था
जब हमारा भी इंतज़ार करती
कहीं 'जान' हमारी थी
लेकिन हमको जाना था और कहीं
क्योंकि ये धरती हमको 'जान' से ज्यादा प्यारी थी
कर्ज़ चुकाना था भगत सुभाष अशफ़ाक़ और आज़ाद का
जिन शहीदों ने कभी प्राण देकर भारत माँ की नज़र उतारी थी
दी कुर्बानियाँ कइयों ने भारत माँ के वास्ते
हस्ती मिटाकर रख दी उसकी जो भी आया इसके रास्ते
करो प्रेम क्योंकि प्रेम में बड़ी शक्ति होती है
लेकिन माँ से इश्क़ नही उसकी तो सिर्फ भक्ति होती है
'अतुल' आखिर क्या लिख पायेगी गुणगान इस 'मिट्टी' का तेरी कलम
में उन शायरों में से नही हूँ जो 'माँ ' स्वरूप इस धरती को कहते हैं 'सनम'
(पुलवामा के शहीदों को शत शत नमन 🙏🌹🙏)
लेखक - अतुल कुमार शर्मा