आधुनिक !!

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न जाने

'प्यार' के विशाल आकार को

हमने एक छोटा सा

गोल दायरा सा घर

क्यों दे दिया है !

'प्यार' को ओछा बनाकर

हमने अपनी संस्कार हीनता का परिचय

ही दिया है !

'प्यार' के स्निध,तरल,गहन और

विशाल व्यक्तित्व के साथ खिलवाड़ करके

'विधाता' का अपमान करके ,

स्वयं को ऊँचा दिखाने का प्रयास

किया करते हैं हम !

'प्यार' की मौलिक गंध में

लपेट दिए हैं हमने ढेर से बनावटी इत्र --और

बंद कर दिया है उसे

एक बनावटी डिबिया में !

यही है हमारी विशालता --और आधुनिकता का प्रमाण ,शायद !!

डॉ. प्रणव भारती

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111780225
Pranava Bharti 2 years ago

शुक्रिया

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

वास्तविक चित्रण.....

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