आधुनिक !!
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न जाने
'प्यार' के विशाल आकार को
हमने एक छोटा सा
गोल दायरा सा घर
क्यों दे दिया है !
'प्यार' को ओछा बनाकर
हमने अपनी संस्कार हीनता का परिचय
ही दिया है !
'प्यार' के स्निध,तरल,गहन और
विशाल व्यक्तित्व के साथ खिलवाड़ करके
'विधाता' का अपमान करके ,
स्वयं को ऊँचा दिखाने का प्रयास
किया करते हैं हम !
'प्यार' की मौलिक गंध में
लपेट दिए हैं हमने ढेर से बनावटी इत्र --और
बंद कर दिया है उसे
एक बनावटी डिबिया में !
यही है हमारी विशालता --और आधुनिकता का प्रमाण ,शायद !!
डॉ. प्रणव भारती