सोचकर! मन को मोड़ता हूँ,
आज फिर! मौन तोड़ता हूँ।
ख्वाहिशें जहन में,तुफान मचाये बैठीं हैं,
इतना कुछ करवा के,न जाने क्यूँ ऐंठीं हैं।।
#दर्पणकासच
#पीड़ा_मन_की
#दर्द_छलक_जाता_है
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Shayri by सनातनी_जितेंद्र मन : 111779170

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