शीर्षक: सच-झूठ
एक झूठ रँगत बदल देती चेहरे की
नजरे बदल जाती साथ चलने वालों की
क्या है ऐसा सच में ? निखर जाता मुखड़ा
कहीं वो ही तो नहीं हमारे दिल का एक टुकड़ा
सच हर पल हसीन होता है जिन्दगीं के लिए
मटमैला हो जाता, झूठ से बहें पसीने के लिए
आसान होता झूठ का, निकलना समस्या के लिए
सच तकलीफ से बाहर आता, सही अस्तित्व के लिए
इतना कहना सही, झूठ की कोई उम्र नहीं होती
सच को आँच नहीं, सही है जग की ये किवदंती
झूठ बराबर पाप नहीं सच बराबर तप नहीं
सच हमें मंजूर नहीं तो प्रभु को झूठ पसंद नहीं
जिसके पास है वापस जाना, अगर सही होकर जाना
अपनों से झूठ, गेरों से कोई बहाना, कभी भी न करना
✍️ कमल भंसाली