कभी-कभी दिल बस बात करना चाहता है।
क्या कहना है नहीं पता, बस बात करना है या शायद दिल खुद को बहलाना चाहता है और इसलिए किसी को थोड़ी देर ही सही मगर सुनना चाहता है।
मैं व्यस्त होना चाहती हूँ। इतनी व्यस्त कि मुझे खुद की धड़कनों को सुनने या महसूस करने का भी वक़्त न हो।
अकेली होती हूँ तो मुझमें शोर बहुत होता है। जो कानों पर हाथ रखकर भी दूर नहीं होता।
जानते हो सबसे बड़ा डर क्या होता है.?
अकेले हो जाने का डर!
यह डरावना होता है, बेहद डरावना।
मेरी पढ़ाई भी सब ख़राब लगने लगी है.. मैंने अब तक लोगों के बिना जीना नहीं सीखा।
ये लोग जो प्रेक्टिकल होते हैं.. इन्होंने कौन सी पढ़ाई की है?
यह भी तो सीखना रह गया है।
मुझे सीधा-सीधा भावनाओं को ज़ाहिर करना भी नहीं आता और क्योंकि मैं ऐसी हूँ तो बड़ा नुकसान है मेरा। मैं खुद से भी वो बातें नहीं कहती जो मेरा दिमाग मेरे दिल से कहता है।
तुम्हें यकीन नहीं होगा मगर मेरे अन्दर एक समय में हजार बातें चलती हैं। एक जंग छिड़ी रहती है.. अंदर बहुत शोर है बहुत ज़्यादा। मैं घण्टों एक ही मुद्रा में बिना किसी कारण के छत को निहार सकती हूँ। रात में नींद नहीं आती मगर दिन भर बिना नींद के लेटी रह सकती हूँ। बिना खाए भी लगता है पेट भरा है।
चलो छोड़ो यह सब, मैं बस बात करना चाहती हूँ।
-रूपकीबातें
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Hindi Blog by Roopanjali singh parmar : 111776302

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