1 अँगीठी
जली अँगीठी बीच में, दिल में उठी हिलोर।
समय गुजरता ही गया, देख हो गई भोर।।

2 आँच
आँच-आग की तापते, नित्य श्रमिक मजदूर।
सड़क किनारे रह रहे, बेघर हैं मजबूर।

3 कुनकुना
नीर कुनकुना पीजिए, ठंडी का है जोर।
स्वस्थ रहे तन-मन सभी, लगे सुहानी भोर।।

4 धूप
धूप दीप नैवेद्य से, करते सब आराध्य।
भक्ति भाव से पूजते, पूजन के हैं साध्य।।

5 कुहासा
दुर्घटना से बच रहे, जीवन है अनमोल।
देख कुहासा सड़क पर, चालक के हैं बोल।।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111776238
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अति सुन्दर प्रस्तुति

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