न जमाने का डर था, ना बोलने पर पहरा,
अपना ही आसमान था, अपना ही सुनहरा सवेरा,
रात भी लेकर आती थी, दादी की सुंदर कहानियां,
ना रात का डर था, ना घनघोर अंधेरा,
अपनी दुनिया तो, खिलौनों में बसती थी,
तब जिंदकी मानो, खुलकर हंसती थी,
नहीं जाना था बचपन के उस पार,
क्योंकि बचपन जीवन का श्रेष्ठ पड़ाव है मेरे यार।
-Aarushi Varma