आज मैंने गांव से कहा-
एक कहानी मुझको सुनाओ
दादा-दादी की तरह
नाना नानी की तरह।
उस पेड़ की तरह
जो फल फूल देता है,
उस खेत की तरह,जो अन्न देता है।
गांव बोलने लगा-
झोला ले विद्यालय गया
सड़क -रास्ते बनाने लगा
बच्चों की टोली सजाने लगा
देश का खाका खींचने लगा,
अंधविश्वासों की मरम्मत करने लगा।
बचपन की बातें बताने लगा
राजा-रानी के घर में झांकने लगा
माँ की कहानियां बांचने लगा
पिता का संदेश सुनाने लगा।
उधर घराट की आवाज आने लगी
देवों के किस्से बनने लगे
घसियारियों की बातचीत होने लगी
कबड्डी का मैदान दिखने लगा
गुल्ली ,झाड़ी में अटक सी गयी,
ठंड में पारा जमने लगा
हवा में शीत बहने लगी
घरों के किवाड़ बंद होने लगे
अंगीठी की आग लुभाने लगी
रातों की कथा रस देने लगी।
वह लड़की जो संग आने लगी थी
बड़ी हुई तो शरमाने लगी थी,
बहुत से किस्से अजब-गजब थे
मधुशाला से निकलते ,गोबर में फिसलते।
गांव अब मेरा ठहर सा गया है
नयी तकनीक में फँस सा गया है,
पलायन का एक अड्डा दिखा है,
आज एक विद्यालय टूटा मिला है।
***महेश रौतेला
०४.११.२०१७