कलम ये मारती है, की तन्हाई पुकारती है.....
नहीं दिल पिघलता उसका, पत्थर सी आढ़ती है।
न खैरियत थी पूंछती, हो खब्त आंख भींचती.....
रहा मक़सद सदा सताना, है प्रेम रोग मन ने माना।
न हि कोई खबर-ठिकाना,था रोज आना-जाना.....
है वस्ल-ए-करम जमाना, हमको पड़ा निभाना।
#दर्द_छलक_जाता_है
#योरकोटकविता
#सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Poem by सनातनी_जितेंद्र मन : 111759081

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