मैं और मेरे अह्सास

हुई गर खता तो मुजे तुम माफ कर देना।
तुजे जो कबूल हो वो इन्साफ कर देना।l

मुहब्बत की रस्मों से अनजान है तो l
दिल से गिले शिकवे साफ कर देना ll

दर्शिता

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111758301

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