मात्र एक रावण के पुतले को फूंक
दशहरे की इतिश्री समझ लेते हम हर साल।
धू धू करते जलता देख
उस पुतले को मन ही मन खुश हो जाते हैं
कर दिया आज हमने रावण रूपी बुराई का अंत
सोच अपनी पीठ थपथपाते हैं।
लेकिन अपने मन के भीतर झांकने की
क्यों नहीं कभी हम जहमत उठाते हैं
या कहूं, अपने अंदर बैठे रावण को
देखने से हम खुद ही घबराते हैं!!
चलो, इस दशहरे पर हम करें खुद से शुरूआत
अपनी व्याधियों- विकारों रूपी रावण का कर दहन
सही मायनों में दशहरे के अभियोजन को बनाए सफल।।
सरोज ✍️

-Saroj Prajapati

Hindi Motivational by Saroj Prajapati : 111757332
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

बिल्कुल सही कहा

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