आपने कभी सपना देखा क्या
जिसमें मैं हूँ, तुम हो
और देश हो, जनता हो,
जीवन बोध हो
"सर्वे सुखिनः सन्तु" की अवधारणा हो।

अनुभूतियाँ मधुरता लिए
हर नदी, हर झील, हर पहाड़ से निकल
धरती और आकाश को जोड़
हमारी आँखों में झिलमिलाएं।

तुमने कभी सपना देखा क्या
झूमती अन्न की बालियों का
विद्यालय जाते बच्चों का
झोले में किताबों का
किताबों में अ,आ,क,ख का।

आपने सपने देखे होंगे
बड़े-बड़े, आसमान से ऊँचे
जहाँ चींटियां नहीं
हवाई जहाज उड़ते हैं,
जहाँ पगडण्डियों पर नहीं
राजपथ पर चला जाता है,
जहां वृक्ष नहीं
वृक्षों की हड्डियां बिछी होती हैं।

सपने देखने में कुछ गलत नहीं
यहाँ कोई राजा हरिचंद्र तो नहीं
न कोई विश्वामित्र है,
पर साफ आकाश तो चाहिए
जहां सपने टिमटिमा सकें।

***महेश रौतेला
28.09.2021

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111753790

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