जीवितपुत्रिका व्रत में ओठघनमा
अहले सुबह बेटी के फोन कॉल पर
जीतिया व्रत शुरू करने उठी
तो चारों तरफ सन्नाटा था,
ना कोई शोर
ना बच्चों में दही चूड़ा खाने की होड़।
व्रती भी कहाँ खायी कुछ ,
सिर्फ ,पानी चाय और पान।
पति उठ बैठे तो उन्हें भी एक खिल्ली पान ,
पर उनके चेहरे पर ना थी मुस्कान।
क्योंकि घर में ना थी धमाचौकड़ी घर तो था सुनसान।
मां को याद कर उदास था-
अचानक याद करने लगा ओठघनमा,
और उसका जीवन्त धमाल ,
बच्चे सब माँ के जगते ही
कैसे तीन बजे भोर ही उठ जाते,
हाथ मुँह धो पंक्ति में बैठ जाते ।
जैसे माँ के साथ साथ
दो दिनों उपवास करेंगे।
बिना पानी और फलाहार ,
चलेगा माँ का व्रत त्योहार।
चूड़ा दही खाने के बाद
सूर्योदय होने तक
बच्चों की टोलियाँ
करते रहते उछल कूद,
और तोड़ लाते फूलों को
डाली से चुन चुन कर,
क्योंकि उसी फूलों से करके पूजा,
बेटे की लम्बी उम्र की होगी कामना ।
पर चारों तरफ सन्नाटा पसरा
और भोर उदास उदास है ,
अपनी जीवन्त परम्परा में
अब थोड़ी भी नही मिठास है।
@मुक्तेश्वर

-Mukteshwar Prasad Singh

Hindi Poem by Mukteshwar Prasad Singh : 111753218

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