प्रेम
तुमको प्यार किया क्यों? इतना
स्वयं नहीं यह जाना।
जलती रही अग्नि -सी खुद मैं,
तुमको ना पहचाना ।
दिल का कोई खाली कोना,
कर देता है पागल सा ।
उनको कौन कहे? समझाएं?
जीवन है प्रेम- पिपासा।
प्रेम? एक अभिशाप और,
चीत्कार भरा सपना है।
मौन -मोन रह प्रेम -चिता में
तिल-- तिल कर तपना है।
धूं--धू कर जब चिता जलेगी
उनको भी तपना है।
प्रेम --अश्रु नयनो से झर -झर
तर्पण भी करना है ।।
इति