हिंदी

गर्भ नाल सी जुड़ी है हमसे,भारत का संस्कार है हिंदी

हर पीढ़ी के अकथ द्वंद के,भावों का आधार है हिंदी

मां सी ममता रही लुटाती,मां का दूजा रूप है हिंदी

जीवन की गति मंद पड़े तो,सुबह की मीठी धूप है हिंदी

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम,सबका मेल कराती हिंदी

भारत मां की कीर्ति पताका,जग में है फहराती हिंदी

पावन तुलसी की माला सी,सबको साथ मिलाती हिंदी

दूजी बहनों सी भाषा को,अपने गले लगाती हिंदी

कर्तव्य हैं भूलें अपना हम सब,भूल किए जाते हैं सरासर
कृतघ्न बन व्यवहार हैं करते,ज्यों घर की मुर्गी दाल बराबर

बोल - चाल पठन - पाठन में,भूल चले निज उन्नत भाषा

पश्चिम के अंधी भक्ति में,मन को देते झूंठी दिलासा

देखकर आंखें खुली हमारी,हिंदी को अपनाते जग में

देशभक्ति का ज्वार है उमड़ा, हर भारतीय के रग - रग में

भारत मां की शान है बिंदी,भारत मां की आन है हिंदी

होगा हिंदी का उत्थान,तभी बढ़ेगा हिंदुस्तान


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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111750036

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