अंधकार

सुबह हुई और जाने कहाँ
चला गया अंधकार।
चारों ओर फैल गया प्रकाश ।
अंधेरे को हराकर
विजयी होकर उजाला
जगमगाने लगा चारों ओर।
लेकिन जब उजाले में आ गया
विजय का अहंकार
तब फिर आ गया अंधकार
और निगल गया सारा प्रकाश ।
क्योंकि प्रकाश के लिये
जलना पडता है सूरज को
बल्ब को, दिये को,
या किसी और को।
लेकिन अंधकार के लिये
कोई नही जलता।
प्रकाश शाश्वत नही
शाश्वत है अंधकार।

Hindi Poem by Rajesh Maheshwari : 111746837

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now