मुश्किलों से इस कदर दोस्ती हो गई है ,
रफ्ता रफ्ता अब जिंदगी बसर हो रही है ,

चराग उम्मीदों वाले कुछ बुझ से गए हैं ,
शायद बद्दुआ किसी की असर हो रही है ,

बस्ती के साहूकारों का मिजाज़ बदल के ,
मुफलिसी प्रति दिन तर-बतर हो रही है ,

मौत शिकायत करे भी तो किस्से करे ,
जिन्दगी ग़म को पीकर अमर हो रही है ,

मैं हो गया मुसाफिर चलते यूं ही राहों में ,
मंज़िल ख़ुद ही दूर जाके सफ़र हो रही है ,

बादल बरसा नहीं एक अरसे से चाहकर ,
पर घरौंदे के लिए बारिश कहर हो रही है ,

तोड़कर आया हूं मैं सभी बंधनों को आज ,
कम यहां सासों की लेकिन उमर हो रही है ,

Hindi Poem by Poetry Of SJT : 111735349
Poetry Of SJT 3 years ago

आभार आपका 💐

Manoj kumar shukla 3 years ago

वाह आदरणीय सुंदर भाव संजोए रचना बधाई हो

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