उसने मुझे एक उड़ान दी
खुला आकाश दिया
आकाश को नक्षत्रों से भर दिया।
एक छोटी नदी दी
जहाँ जोंक दिखते थे,
बड़ी नदी दी
जहाँ मछलियां तैरती थीं
सिंह पानी पीते थे
हिरन प्यास बुझाते थे।
उसने मुझे पहाड़ दिया
बिल्कुल ठंडा,
कि मैं हर मौसम में
आग सेंक सकूँ,
रजाई ओढ़ सकूँ
ऊनी कपड़े पहन सकूँ।
दिया एक समुद्र
जिसके तटों पर आ-जा सकूँ,
खारे पानी की मछलियां देख सकूँ।
वह मुझे चमत्कृत करता रहा
मेरी आत्मा को पलटते रहा,
जब प्यार करने लौटा
तो अपनी कृति को परखने लगा।

* महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111722877
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अति सुन्दर प्रस्तुति

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