My Painful Poem..!!!
कितना महफूज हूँ
मैं कोने में
कोई अड़चन नहीं है
यहाँ रोने में
बहूत तड़पा है दिल
दिलेर होने में
क्या कुछ नहीं सहा
दाग़ धोने में
लोक-डाउन बिताया
सारा नौकरी में
राश फ़िर भी न आया
अंतर कलह में
किरदार साफ़ होना भी
सज़ा ज़माने में
ईमानदारी बेवक़ूफ़ी है
आज के दौर में
निवृत्ति वय मर्यादा भी
तकलीफ सर्विस में
अपने भी तब्दील हूएँ
हालात से ग़ैरों में
प्रभु की लीला अजीब
खड़े हैं कठघरे में
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