आओ, घर बन जायें
उसकी बातों को इकठ्ठा कर
सुनहरा कल बनायें।

राहें अब भी हैं
खेतों में फसल अब भी उगती है
आओ, कोई गीत गुनगुना लें।

घर में बच्चे अब भी दौड़ते हैं
हर सुबह को छूकर
हर दिन को घर में इकट्ठा कर लें।

घर में जो प्यार सोया है
उसे जगा दें,
आओ, घर को बार-बार सजा दें।

घर पर ही सज आती है
घर पर थकान मिटती है
आओ, घर बन जायें।

** महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111712883

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