कुछ ऐसी ही सूरत थी,
कुछ ऐसा ही मुखड़ा था,
कुछ- कुछ मीरा जैसी थी,
कुछ - कुछ राधा जैसी थी,
बातों-बातों में आती थी,
मीलों-मीलों मन में थी,
कुछ शैलों सा अल्हड़पन था,
कुछ जानी मानी सूरत थी,
कभी आते-जाते देखा था,
कुछ चलने का सपना था,
कुछ मीरा जैसा मुखड़ा था।
* महेश रौतेला
२६.०५.२०१३