कुछ ऐसी ही सूरत थी,
कुछ ऐसा ही मुखड़ा था,
कुछ- कुछ मीरा जैसी थी,
कुछ - कुछ राधा जैसी थी,
बातों-बातों में आती थी,
मीलों-मीलों मन में थी,
कुछ शैलों सा अल्हड़पन था,
कुछ जानी मानी सूरत थी,
कभी आते-जाते देखा था,
कुछ चलने का सपना था,
कुछ मीरा जैसा मुखड़ा था।

* महेश रौतेला
२६.०५.२०१३

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111711531
Umakant 3 years ago

दिल जो कुछ कह ना सका जो.....

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now