एक पल फुरसत नहीं थी रुकने की,
होड़ सबसे आगे होने की..
सर्वस्व खुद को समझकर,
ये नफ़रत धरती पर बोने की..
महामारी तो पहले से ही थी..
बीमारी तो अब आयी है..
कुछ अच्छे, बुरे सबक के साथ..
वो मृत्यु साथ लायी है..
वन उपवन नष्ट कर दिए, शहरों का निर्माण किया,
प्रकति के नियम बदलकर विनाश का आह्वान किया..
खुद को खुदा समझ कर ईश्वर का परिहास किया..
शायद अब मनुष्य खुद को बदले,
जब उसने प्रकृति के आगे मुह की खायी है..
महामारी तो पहले से ही थी..
बीमारी तो अब आयी है...

Hindi Poem by Sarita Sharma : 111705715

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