अमरता

रमेशचंद्र नामक व्यक्ति जो कि एक हाई स्कूल से प्रधानाध्यापक के पद से रिटायर हुये थे, उन्होने यह निर्णय लिया कि प्रतिवर्ष किसी शाला में गरीब बच्चों को अध्ययन हेतु स्कूल यूनिफार्म, किताबें एवं अन्य सुविधाओं की व्यवस्थाएँ प्रतिवर्ष करायेंगे और इसे गोपनीय रखते हुए उस शाला के व्यवस्थापकों को भी उनकी पहचान न मालूम पडे ऐसी व्यवस्था करके उन्होंने अपना सेवाकार्य प्रारंभ कर दिया। उन्होंने अपनी भावनओं और कार्यों को कभी सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नही होने दिया। यहाँ तक कि उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं से शाला प्राचार्य अवगत तो थे परंतु उन्हें भी ऐसे सद्कार्य में लिप्त व्यक्ति के नाम, पता या पहचान की कोई जानकारी नही थी। यह कार्य निर्बाध गति से बिना किसी अवरोध के संपन्न हो रहा था।
एक दिन अचानक ही रमेशचंद्र जी का हृदयाघात के कारण स्वर्गवास हो गया। उनकी नातिन जो कि बचपन से ही रमेशचंद्र जी के साथ रहती थी, उसने उनके समस्त दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से रख दिया था। एक दिन प्रातःकाल के समाचारपत्रों में कुछ बच्चों की मार्मिक अपील छपी थी कि एक सज्जन जिनके माध्यम से हमारे षिक्षा संबंधी सभी खर्चांे की पूर्ति होती थी, पिछले तीन महिनों से वह दान राशि नही प्राप्त हो रही है, यदि इसे तुरंत नही जमा करवाया गया तो अगले माह से हम सब के नाम शाला से काट दिये जायेंगे। यह पढकर रमेषचंद्र जी की नातिन चैंकी, तभी उसे याद आया कि उनके दादा जी की फाइलों को जमाते समय उसने एक फाइल में अनेक गरीब बच्चों के नाम एवं शिक्षण संस्थाओं के नाम देखे थे। कही ऐसा तो नही कि ये वही बच्चे हो।
वह फाइल लेकर उस शिक्षा संस्थान के प्राचार्य के पास जाती है और बच्चों के नामों का सत्यापन करने के बाद उसने यह सुविधा पुनः अपने स्वर्गीय दादा जी स्मृति में प्रारंभ करने का निर्णय लिया। वे सभी बच्चे जो इस सुविधा से लाभान्वित हो रहे थे, के साथ साथ अन्य सभी बच्चों एवं कर्मचारियों ने भरे हृदय से अपनी श्रद्धांजली रमेशचंद्र जी के प्रति समर्पित की। यह देखकर उनकी नातिन भाव विभोर हो गई और उसके मन में यह विचार आया कि व्यक्ति अपने जीवन में मान सम्मान] सेवा] सहृदयता] सद्कार्यों आदि गुणों से मृत्यु के पश्चात भी जनमानस के दिलों में सदैव जीवित रहता है। उसने भी अपने जीवन में यह प्रण लिया कि वह भी अपने दादाजी के बताये हुये पथ पर चलेगी।

Hindi Story by Rajesh Maheshwari : 111701083

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