अस्मिता की लांघ मैं मर्यादा चला...
दहकते अंगार में आकर जला...
चल रहे इस राह में,जल रहे हर लोग हैं,
प्रीत ये ऐसी पुनीता,हो गई अब जोग है।
...अस्मिता
चल-चला-चल मन-मुसाफिर,
रोक न कदमों को तु अब..
तप-तपाते रोग में, नियति में संजोग में,
जप व्रत नियम प्रयोग में,लग गया अब भोग है।...अस्मिता
✍️क्रमशः
सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Song by सनातनी_जितेंद्र मन : 111700711

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