Nmमैं और मेरे अह्सास

गैरमौजूदगी खटक रही थी तेरी आशियाने को l
रह रह के याद आ रहीं थी तेरी आशियाने को ll

एक दिन शिकायतें तेरी कर दी जाके ख़ुदा को l
साथ मांगा तेरा तुरंत तथास्तु कहा आशियाने को ll

कई बर्षों इंतजार किया इंसान के लौटने का l
आश टूटने,आखरी कदम लेना पड़ा आशियाने को ll

दर्शिता

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111694349

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