हर स्त्री
मीरा , राधा या पार्वती बन
भटक रही वन वन
ढूंढे
अपने कान्हा या शिव को
होने को पूर्ण तृप्त..
हर पुरुष
कान्हा या शिव बन
भटक रहा वन वन
ढूंढे अपनी राधा, मीरा या पार्वती को
होने को पूर्ण तृप्त...
पर ना जाने वो
कि
जिस कस्तूरी को ढूंढ रहे
बसी है वो
उनके ही भीतर......
डूबे
ध्यान में और प्रेम में
वो
तो मिले
स्त्री को सांवरिया या शिव
पुरुष को राधा ,मीरा या पार्वती
अपने ही कुंडल में...
कहीं बाहर के
किसी पुरुष या स्त्री में
थोड़ी सी झलक मिल जाये उसे
पर वो होंगे तृप्त
तभी
जब
अस्तित्व के प्रति
पूर्ण समर्पण और अहोभाव के भाव से
स्वयं की रूह में करे उस के दर्शन
और
कहलाये
अर्धनर्श्वेर या अर्धनारीश्वર......