मैं और मेरे अह्सास

महामारी ये कैसी ख़ुदा चल रही है l
डराने इंसानों को हवा चल रही है ll

आजकल भयानक मंजर है फ़ैला l
बिना मरज़ी के रजा चल रही है ll

हमेश सम्भल जाता हू गिरते गिरते l
ना जाने किसकी दुआ चल रही है ll

दर्शिता

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111693864

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