ये शब्द

ये शब्द ही तो हैं
जो बांध लेते हैं डोर से
हाँ रिश्तों की अदृश्य डोर से।
मुंह से निकल कर सीधे
दिल में उतर जाते हैं।
अजनबी को भी बना लेते हैं अपना।
और कभी अपने को भी
कर देते हैं पराया।
यही शब्द कभी राम को
देते हैं चौदह वर्ष का वनवास
और कभी कराते हैं महाभारत।
यही शब्द सूर कबीर तुलसी
की लेखनी से अमर हो जाते हैं।
तो मीर गालिब की गजलों में
मोहब्बत के पैगाम बन जाते हैं।
मर कर भी अमर हो जाते हैं शब्द
और गूँजते रहते हैं सदियों तक
प्रभावित करते हैं आने वाली पीढियों को।
सहजे जाते हैं ग्रंथों में
ताकि लोग उनसे कुछ सीखें
और चुनें कल्याणकारी रास्ता।
रक्षा करें इस कायनात की
सबकी भलाई के लिये।
इस लिये शब्द हमेशा ही
ऐसे हों जो प्रेम से भीगे हुए हों।
दया करुणा से सजे हुए
दीपक की लौ की तरह
आशा की ज्योति लिये हुए।
शब्द जो दुखी लोगों की मुस्कान
और मुश्किल राहों के फूल बन जांय
और अमर हो जांय सदा के लिये ।

स्वरचित व मौलिक
जमीला खातून

Hindi Poem by Jamila Khatun : 111690897
Jamila Khatun 3 years ago

जी बहुत बहुत हार्दिक आभार नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अति सुन्दर....

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now