कभी कभी वो पहला ख़त जो आखिरी बन जाता है
भावनाओं का ज्वार जो एक दीवार से जा टकराता है
कभी कभी उम्र बीत जाती है बस ये समझने में
हर किसी को मुकम्मल जहाँ कब मिल पाता है

-Prateek Dave

Hindi Poem by Prateek  Dave : 111690129

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