ढुंढना मत फिर मुझे कीसी बहाने से,
बस खुद के साथ ही रहना है दूर जमाने से।
एक नशा सा रहेता खुद के साथ जीये जाने में।
नहीं ढुंढना उस नशें को अब तेरी आंखों के मयखाने में।।

-Er Twinkal Vyas

Hindi Shayri by Er Twinkal Vyas : 111689570

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