न तुम कुंभ, न मैं तुम्हारी कुंभकार,
नहीं थोपूंगी तुमपर अपने विचार,
तुम हो स्वतंत्र, सजीव एक आकार,
करो स्वयं अपना व्यक्तित्व निर्माण,
मैं बनूँगी तुम्हारी मात्र पथप्रदर्शक,
सम्भलकर बढ़ते चलो जग पथ पर,
कांटे-कंकड़ चुनकर,कर हर बाधा पार,
रचो सफलता के उच्च आयाम,
भरो अपने जीवन में इंद्रधनुषी रँग,
करो अपने समस्त स्वप्न साकार।
रमा शर्मा'मानवी',अलीगढ़
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