सभी पुरुष हिंसक,शोषक नहीं होते,
हर स्त्री अबला,शोषित नहीं होती।
न तो सभी सास कुटिल होती हैं,
न हर बहू तेज और चालाक होती है,
हर युवा नादान,विद्रोही नहीं होता।
सभी बड़े सर्वदा सही ही नहीं होते,
हर बुजुर्ग हमेशा ही लाचार नहीं है,
हर रिश्ते का एक सा आधार नहीं है,
हर कोई एक सा समझदार नहीं है,
न तो सभी निर्धन सदैव ईमानदार हैं,
न ही हर धनवान हमेशा बेईमान है,
मत आंको सबको एक नजरिए से,
न देखो हर किसी को एक चश्मे से,
न ही तोलो सभी को एक तराजू में।
करो सदैव प्रयोग अन्तरचक्षु का,
तभी पहचान सकोगे असलियत।
रमा शर्मा' मानवी'
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