नादानियाँ
खिलता सा चहकता सा
शैतानियों सा शरारतों सा
थोड़ी मासूमियत थी
शायद थोड़ी ज्यादा थी
बचपन था बचपना था
जैसा भी था मेरा था
गलतियों में डाँट थी
फिर ढेरों सा प्यार था
नादानियाँ बेशुमार थी।।
बचपना था दिल सच्चा था
दिल भी शायद थोड़ा कच्चा था
नासमझी थी थोड़ा नासमझ था
उम्मीदों की उड़ान थी
ख्वाबों का आसमान था
मासूमियत की नादानियाँ थी
शरारतों का पिटारा था
मेरा बचपन मेरा अपना था
जिसमें नादानियों का खजाना था।।
©Satender_Tiwari_Brokenwords
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