शीर्षक: देश मेरा
सनातन भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश विश्व में न कोई और है।
हुई सभ्यता की शुरुआत जहां से, इसके निवासी कहलाते हम 'आर्य'।
ईश्वर की भवभूतियों का जो प्रत्यक्ष एवं प्रथम भंडार है।
फिर क्यूं न गर्व से कहूं
देश मेरा महान है।
जिसके भाल पर हिमालय सम मुकुट साजे,
कन्याकुमारी नूपुर बन छम-छम बाजे।
नदियां बहाएं सुधा जलधारा,
विविध बोलियों के बीच मातृभाषा नेह पाए ढ़ेर सारा।
विविधता में एकता जिसकी पहचान है।
फिर क्यूं न गर्व से कहूं
देश मेरा महान है।
जिसकी धरोहर "वेद" और स्तम्भ "विज्ञान" है।
जिसकी माटी ने जन्में अमर 'जय जवान' 'जय किसान' है।
लोकतंत्र, गणतंत्र, धर्म निरपेक्षता जिसके चरित्र एवं सद्भाव है।
किसानों की मेहनत व वीरों का वीरत्व जिसका अभिमान है।
फिर क्यूं न गर्व से कहूं
देश मेरा महान है।
जिसके वर्चच्व का डंका चहुं ओर बाजे,
देश मेरा पूर्णतः आत्मनिर्भर लागे।
विश्व शक्ति को भी ढांढस देने में
देश मेरा सज है।
जिसके अनुसरण में अब सर्व जग का उत्थान है।
फिर क्यूं न गर्व से कहूं
देश मेरा महान है।
लाखों सेनानियों ने सैकड़ों बरसों की बेड़ियों को तोडने के लिए,
मां भारती के चरणों पर अपना शीश चढ़ाया।
फिर कहीं जाकर हमने स्वाधीनता का स्वाद पाया।
कम समय में जिसने वैज्ञानिक व तकनीकी रूप से अपना अतुलनीय वर्चस्व बनाया है।
फिर क्यूं न गर्व से कहूं
देश मेरा महान है।